Shravan Vinayak Chaturthi 2024 : तिथी आणि मुहूर्त

GANESH KUBAL
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Shravan Vinayak Chaturthi 2024

Shravan Vinayak Chaturthi 2024 : हिंदू धर्मात, कोणत्याही शुभ कार्याची सुरुवात गणेश पूजनाने होते. गणपतीला प्रथम पूजनीय देवाचा दर्जा प्राप्त आहे. गणेश चतुर्थी गणपतीला समर्पित आहे आणि ही तिथी प्रत्येक महिन्यात दोनदा येते – एक शुक्ल पक्षात आणि दुसरी कृष्ण पक्षात.

2024 मध्ये Shravan Vinayak Chaturthi गुरुवार, 8 ऑगस्ट रोजी साजरी केली जाणार आहे. चला जाणून घेऊया या पवित्र दिवसाची तिथी, मुहूर्त, पूजाविधी आणि महत्त्व.

धार्मिक महत्व

Shravan Vinayak Chaturthi का धार्मिक महत्व अत्यंत है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी विघ्नों का नाश होता है और भक्तों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से इस पर्व का मुख्य उद्देश है, समाज में एकता और भाईचारे को प्रोत्साहित करना।

गणेश चतुर्थी का उत्सव सिर्फ धार्मिक आधार पर ही नहीं, बल्कि समाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह पर्व कला, संगीत और नृत्य के माध्यम से सामूहिक स्वाभिमान और सांस्कृतिक मजबूती को प्रकट करता है।

1. Shravan Vinayak Chaturthi तिथी आणि मुहूर्त

पंचांगानुसार, 8 ऑगस्ट 2024 रोजी Shravan Vinayak Chaturthi साजरी होत आहे. श्रावण महिन्यातील शुक्ल पक्षातील चतुर्थी तिथी 7 ऑगस्ट रोजी रात्री 10 वाजून 05 मिनिटांनी प्रारंभ होईल आणि 8 ऑगस्ट रोजी रात्री उशीरा 12 वाजून 36 मिनिटांनी समाप्त होईल. उदयतिथीनुसार, Shravan Vinayak Chaturthi 8 ऑगस्ट रोजी साजरी होईल. पूजेचा शुभ मुहूर्त सकाळी 11 वाजून 07 मिनिटांपासून ते दुपारी 01 वाजून 46 मिनिटांपर्यंत आहे.

Shravan Vinayak Chaturthi 2024
Shravan Vinayak Chaturthi 2024

2. पूजाविधी

Shravan Vinayak Chaturthi च्या दिवशी गणेश पूजन अत्यंत विधीवत आणि श्रद्धेने केले जाते. गणेश मूर्तीची स्थापना करून, त्यांना स्नान घालून शुद्ध वस्त्र अर्पण करतात. त्यानंतर चंदन, अक्षत, फुलं, धूप, दीप आणि नैवेद्य अर्पण करतात. गणेशाच्या आवडत्या मोदकांचा नैवेद्य असतो. आरती करून, भक्तगण गणपतीची कृपा प्राप्त करतात.

Shravan Vinayak Chaturthi 2024

3. गणेश मंत्र आणि त्यांचे महत्त्व

ॐ गं गणपतये नमः – हा मंत्र 21 वेळा जपल्याने नोकरीत प्रगती होते.
ॐ ग गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा – हा मंत्र 11 वेळा जपल्याने शिक्षणात प्रगती होते.

4. नोकरीतील प्रगतीसाठी उपाय

ज्योतिषानुसार, Shravan Vinayak Chaturthi च्या दिवशी ‘ॐ गं गणपतये नमः’ या मंत्राचा 21 वेळा जप करावा. गणपतीला झेंडूचे फूल अर्पण करून, नोकरीशी संबंधित कोणतीही वस्तू गणपतीसमोर ठेवा. श्री गणेश चालीसाचे पठण करा, याने नोकरीत प्रगती होईल.

5. विद्या प्राप्तीसाठी मंत्र जप

विद्या प्राप्तीसाठी ‘ॐ ग गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा’ या मंत्राचा 11 वेळा जप करा. गणपतीला 11 मोदक अर्पण करून ते गरजूला द्या. असे केल्याने शिक्षणात प्रगती होते.

6. धनप्राप्तीसाठी तिजोरीत ठेवा या गोष्टी

नेहमी आर्थिक अडचणींना सामोरे जावे लागत असेल, तर Shravan Vinayak Chaturthi ला लाल रंगाच्या कापडात सुपारी ठेवून, तिला चंदनाचा तिलक लावून अक्षत अर्पण करा. कापडाची गाठ बांधून ती तिजोरीत ठेवा. याने आर्थिक स्थिती मजबूत होईल.

7. श्रावण Shravan Vinayak Chaturthi चे धार्मिक महत्त्व

Shravan Vinayak Chaturthi च्या दिवशी गणेश पूजन केल्याने सर्व विघ्न दूर होतात आणि सुख-समृद्धी प्राप्त होते. धार्मिक मान्यतेनुसार, गणेश चतुर्थीचे व्रत केल्याने मनोकामना पूर्ण होतात.

8. शिवयोग आणि रवियोग

Shravan Vinayak Chaturthi ला शिवयोग आणि रवियोग जुळून येत आहे. धार्मिक दृष्ट्या हे दोन्ही संयोग अत्यंत महत्त्वाचे मानले जातात. या संयोगात गणेश पूजन केल्याने विशेष फलप्राप्ती होते.

गणपती आरती(Ganesh Aarti)

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नूरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।।
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची।।
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती।
दर्शनमात्रे मन कामना पुरती।। १।।

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।।
हिरे जडित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नुपुरे चरणी घागरिया।। २।।

लंबोदर पितांबर फणिवरवंदना।
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना।।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना।। ३।।

गणेश चालीसा(Ganesh Chalisha)

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदन्त, दयावन्त, चारि भुजाधारी।
माथे सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी।।

पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।

हार चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।

दीनन की लाज राख, शम्भु सुत कारी।
कामना को पूर्ण कर, यश दीन्हा भारी।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

दोहा:

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगलमूर्ति रूप।
लम्बोदर नमो नमः, सिद्धि-सिद्धि दायक कृप।।

Shravan Vinayak Chaturthi का इतिहास

Shravan Vinayak Chaturthi का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है और यह पर्व भगवान गणेश की आराधना के लिए मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखती है और इसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।

  • महाभारत में उल्लेख: महाभारत में भगवान गणेश का पहला उल्लेख मिलता है, जब वे वेदव्यास के निर्देश पर महाभारत की रचना के लिए गणेश जी ने लेखन कार्य किया था।
  • पुराणों में वर्णन: शिव पुराण और गणेश पुराण में विनायक चतुर्थी का महत्व वर्णित है। इसमें भगवान गणेश के जन्म के संबंध में कई कथाएं हैं।
  • प्राचीन समाज: प्राचीन समाज में गणेश को व्यापारियों और लेखकों का अधिपति माना जाता था। इस दिन व्यापारी और लेखक भगवान गणेश की पूजा करते थे ताकि उनका व्यापार और लेखन सफलतापूर्वक चलता रहे।
  • मराठा साम्राज्य: मराठा साम्राज्य के दौरान भी विनायक चतुर्थी को महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता था। छत्रपति शिवाजी ने इसे एक प्रमुख त्योहार के रूप में प्रोत्साहित किया।
  • ब्रिटिश काल: ब्रिटिश शासन के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनाया। 1893 में, तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की, जिससे यह पर्व एक जन आंदोलन का रूप ले सका।

विनायक चतुर्थी का इतिहास हमें बताता है कि कैसे यह पर्व समय-समय पर सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का प्रतीक रहा है। विभिन्न कालखंडों में इस पर्व ने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

इस महापर्व का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

“विनायक चतुर्थी एक ऐसा पर्व है जिस पर भगवान गणेश की आराधना करके भक्तगण अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की उम्मीद करते हैं।

विनायक चतुर्थी का यह अनुष्ठानिक आचार-व्यवहार सदियों से चली आ रही परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।

विनायक चतुर्थी पर कथा: भगवान गणेश की कहानियाँ

विनायक चतुर्थी पर अनेक कहानियाँ और कथाएँ कही जाती हैं जो भगवान गणेश के अद्भुत चमत्कारों और गुणों से जुड़ी होती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ इस प्रकार हैं:

1. गणेश का जन्म

विवाह के बाद पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक पुत्र की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। गणेश जी का जन्म अतुलनीय रूप वालों और अद्वितीय बुद्धि वाले देवता के रूप में हुआ।

2. शिव का क्रोध

गणेश जी को पार्वती ने द्वार पर पहरेदार बनाया। जब शिव जी घर लौटे तो गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोका। इससे क्रोधित होकर शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। बाद में पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने एक हाथी के सिर को गणेश के धड़ पर लगाया और उसे पुनः जीवन दिया।

3. भगवान गणेश और चंद्रमा की कथा

एक बार भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर बैठकर जा रहे थे। रास्ते में मूषक डगमगा गया और गणेश जी गिर पड़े। इस स्थिति में चंद्रमा ने उन पर हंस दिया। गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि वह अपना चमकना खो देगा। बाद में चंद्रमा ने गणेश जी से माफी मांगी, और श्राप में कहा गया कि चंद्रमा हर महीने घटता और बढ़ता रहेगा।

4. भगवान गणेश और व्यास ऋषि

महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना हेतु गणेश जी को अपना लिखा हुआ सुनाने के लिए चुना। गणेश जी तैयार हुए पर शर्त रखी कि महाभारत की कथा निरंतर सुनाई जाए और रुकवाने पर वे लिखना छोड़ देंगे। यह शर्त मानकर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की महान कथा को गणेश जी के माध्यम से लिखवाया।

5. गणेश जी और कार्तिकेय की परिक्रमा

देवताओं ने एक बार गणेश जी और उनके भाई कार्तिकेय को पृथ्वी की परिक्रमा की स्पर्धा के लिए चुनौती दी। कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर निकल पड़े, लेकिन गणेश जी ने अपने माता-पिता शिव और पार्वती की परिक्रमा कर ली, यह कहते हुए कि उनके माता-पिता ही उनका विश्व हैं। इस प्रकार गणेश जी ने जीती स्पर्धा और विजेता घोषित किए गए।

भगवान गणेश के जीवन की यह कहानियाँ और चमत्कारिक वृत्तांत न केवल उनके शौर्य और बुद्धिमता का बखान करते हैं, बल्कि समाज को नैतिकता, भक्ति और श्रद्धा का संदेश भी देते हैं।

विनायक चतुर्थी पर भोग और प्रसाद

विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भोग और प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं जो भगवान गणेश की प्रिय होती हैं। इन प्रसादों में मुख्यतः लड्डू, मोदक, और कई अन्य मिठाइयाँ शामिल होती हैं।

भोग और प्रसाद के प्रमुख व्यंजन

  1. मोदक: मोदक भगवान गणेश का सबसे पसंदीदा मिष्ठान्न है। यह नारियल और गुड़ से भरकर चावल के आटे से बनाया जाता है।
  2. लड्डू: विशेषकर बेसन के लड्डू या नारियल के लड्डू भगवान गणेश को चढ़ाए जाते हैं।
  3. पूरी और चने: इस दिन पूरी और चने का भी भोग लगाया जाता है।
  4. खीर: दूध, चावल और शक्कर से बनी खीर को भी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
  5. फल: अनार, केला, सहतूत और विभिन्न तरह के फलों का भी भोग लगाया जाता है।

भोग और प्रसाद की विशेषताएं

  • शुद्धता: प्रसाद बनाते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। भोग हमेशा शुद्ध और ताजे पदार्थों से बनाना चाहिए।
  • श्रद्धा: भोग और प्रसाद बनाने में श्रद्धा और भक्ति का भाव महत्वपूर्ण है।
  • विधि: प्रसाद भगवान के चरणों में चढ़ाकर प्रार्थना की जाती है।

प्रसाद वितरण की परंपरा

भोग अर्पण के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है। प्रसाद को मंदिर में या घर में मौजूद सभी भक्तों में बांटा जाता है जिससे सबको भगवान गणेश की कृपा प्राप्त हो सके।

“विनायक चतुर्थी का प्रसाद केवल भोजन नहीं, भगवान गणेश की आशीर्वाद स्वरूप मानी जाती है।”

विनायक चतुर्थी पर विशेष भोग और प्रसाद समय की परंपराओं और मान्यताओं अनुसार तय किया जाता है। इस पर्व पर लोग विशेष आयोजन करते हैं और भगवान गणेश की पूजा अर्चना का आयोजन करते हैं। इस दिन का प्रसाद भक्तों के बीच बांटने से समाज में मेलजोल और प्रेम की भावना का विकास होता है।

विनायक चतुर्थी की वर्तमान प्रासंगिकता

विनायक चतुर्थी, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, आज के समय में विशेष महत्व रखती है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रासंगिकता

  1. धार्मिक आस्था: विनायक चतुर्थी भगवान गणेश की आराधना का पर्व है। यह दिन भक्तों के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
  2. परंपराओं का निर्वहन: यह पर्व भारतीय संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित और संप्रेषित करने में सहायक होता है।

सामाजिक प्रासंगिकता

  1. समुदायिक एकता: यह पर्व विभिन्न समुदायों के लोगों को एकजुट करता है। गणेश पंडालों में सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं।
  2. सामाजिक सेवा: इस मौके पर विभिन्न सामाजिक सेवा गतिविधियाँ जैसे रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच कैंप आदि का आयोजन होता है।

आर्थिक प्रासंगिकता

  1. स्थानीय व्यापार: विनायक चतुर्थी के दौरान स्थानीय बाजारों में सजावट, मूर्तियाँ, और पूजा सामग्री की बिक्री बढ़ती है, जिससे स्थानीय व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है।
  2. पर्यटन: इस अवसर पर पर्यटक विभिन्न स्थानों पर गणेश उत्सव के भव्य समारोह देखने के लिए आते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग को भी लाभ होता है।

पर्यावरणीय जागरूकता

  1. पर्यावरण संरक्षण: पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण की दृष्टि से जागरूकता बढ़ी है। लोग अब पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने के लिए मिट्टी की मूर्तियों और प्राकृतिक सजावट का उपयोग करते हैं।
  2. साफ-सफाई अभियान: प्रासंगिकता के अंतर्गत विभिन्न संगठनों द्वारा स्वच्छता अभियानों का संचालन किया जाता है।

आधुनिक दृष्टिकोण

  1. संविधान का सम्मान: गणेश चतुर्थी संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान प्रकट करने का भी एक मार्ग बन गया है। यह उत्सव विविधता में एकता का प्रतिरूप है।
  2. सामूहिक समारोह: आजकल यह पर्व केवल धार्मिक आयोजन न रहकर, सामूहिक मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी मंच बन गया है।

विनायक चतुर्थी की प्रासंगिकता, विभिन्न क्षेत्रों में अपने अद्वितीय योगदान के माध्यम से, हमारे जीवन को नया दृष्टिकोण और सकारात्मकता प्रदान करती है।

विनायक चतुर्थी के दौरान पर्यावरणीय संरक्षण पहल

विनायक चतुर्थी के दौरान पर्यावरण संरक्षण की पहलों पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर्व को मनाने के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारियों का पालन भी सुनिश्चित किया जाता है।

पर्यावरण के अनुकूल गणेश मूर्तियाँ

  1. मिट्टी की मूर्तियाँ: पारंपरिक प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियों के स्थान पर मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग किया जाना चाहिए। ये जल में आसानी से विलीन हो जाती हैं।
  2. प्राकृतिक रंग: मूर्तियों को रंगने के लिए रासायनिक रंगों के बजाय प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाना चाहिए, जो जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करते।

विसर्जन के लिए उपाय

  1. कृत्रिम टैंक: स्थानीय समुदाय और नगरपालिका समितियाँ विसर्जन के लिए कृत्रिम टैंकों की व्यवस्था करें।
  2. घर पर विसर्जन: छोटी मूर्तियों का घर पर विसर्जन करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। मिट्टी की मूर्तियों को गमलों में विसर्जित करना और परिणामी मिट्टी का उपयोग पौधों में करना उपयुक्त है।

पूजन सामग्रियों का सही प्रबंधन

  1. बायोडिग्रेडेबल सामग्री: पूजन सामग्रियों के लिए बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग करें जो प्राकृतिक रूप से विघटित हो सकती हैं।
  2. कंपोस्टिंग: पूजन के बाद बचे हुए फूलों और अन्य जैविक सामग्री का कंपोस्टिंग के लिए प्रयोग करना चाहिए।

जन जागरूकता

  1. शिक्षा और प्रचार: पर्यावरणीय पहल के महत्व को बताने के लिए स्कूलों और समाज के बीच कार्यशालाओं का आयोजन।
  2. सोशल मीडिया अभियान: सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग कर जागरूकता फैलाना।

सहयोग और समर्थन

  1. स्थानीय संगठनों का सहयोग: एनजीओ और स्थानीय समूहों के सहयोग से पर्यावरण अनुकूल पहलें शुरू की जा सकती हैं।
  2. सरकारी समर्थन: सरकारी निकायों का समर्थन और नीति निर्धारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इन पहलों को अपनाकर, विनायक चतुर्थी को पर्यावरण के अनुकूल बनाना सम्भव है और इस महत्वपूर्ण पर्व को मनाते हुए प्रकृति का सम्मान भी किया जा सकता है।

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